गंगा पर बोल बौने होंगे राज ठाकरे
गंगा तो गंगा है। गोमुख उद्गम से लेकर कर्णप्रयाग, देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, ऋषिकेश, हरिद्वार, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी, पटना होते हुए कोलकाता के निकट गंगासागर तक अनवरतअनथक यात्रा करते हुए बंगाल की खाड़ी में समाहित हो जाती है। सभी स्थानों पर गंगा गंगा ही है। भागीरथ जब स्वर्ग से गंगा को धरती पर लाए थे तब भी गंगा गंगा थी और आज हम सभी गंगा के लिए जो कुछ कर रहे हैं तब भी गंगा गंगा ही है। गंगा ने स्वरूप बदला या हमने उसका स्वरूप बदल दिया यह प्रश्न विचारणीय है! परंतु नहीं बदला तो गंगा का नाम नहीं बदला। असंख्य श्रद्धालुओं की भावना नहीं बदली, विश्वास नहीं डिगा, श्रद्धा न्यून नहीं हुई।
हां, कुछ अंतर है तो गंगा के पानी में अंतर है। जो गंगा का पानी गोमुख, गंगोत्री, ऋषिकेश तक है; वैसा ही निर्मल उतना ही गुणवत्ता पूर्ण गंगा का पानी कानपुर, बनारस, पटना या कोलकाता में होगा यह जरूरी नहीं। जिस प्रकार से घर की छत के ऊपर स्थापित पानी की टंकी में पानी एक ही होता है परंतु अलग-अलग स्थान पर उस पानी का प्रयोग हमारी भावना को बदल देता है। पाइप में एक ही पानी है वही रसोई घर में प्रयोग होता है और वही शौचालय में। तो क्या हम शौचालय के नल से पानी लेकर उसे पी सकते हैं ? या शौचालय का मग्गा लाकर रसोई में प्रयोग कर सकते हैं ? अर्थात पानी तो एक है स्थान तथा प्रयोग के कारण से उसका स्वरूप और भावना परिवर्तित हो जाती है।
इसी प्रकार से गंगा तथा उसके प्रवाह में जिस स्थान पर मालिन जल का नाला आकार सम्मिलित हो रहा है वहां के कुछ किलोमीटर के क्षेत्र में उसका पानी प्रदूषित हो जाता है। पूरे गंगा के प्रवाह में अनेक नगरों महानगरों में मालिन जल के नाले गंगा में सम्मिलित होते हैं। उस निश्चित स्थान पर गंगा का पानी प्रदूषित हो जाता है। परंतु 2000 किलोमीटर से अधिक प्रवाहमान पूरी गंगा ही अपवित्र या प्रदूषित हो गई ऐसी धारणा या बयान अपरिपक्व मानसिकता को दर्शाता है। गंगा स्वच्छता मिशन के अंतर्गत सरकारी तथा अ सरकारी स्तर पर गंगा के जल को प्रदूषण मुक्त रखने निमित्त अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। बढ़ती जनसंख्या तथा आवश्यकताओं की दृष्टि से और भी अधिक तेजी से प्रयास करने की आवश्यकता है। परंतु राज ठाकरे जैसे राजनेता का यह कहना कि “गंगा का पानी साफ नहीं मैं इस छू भी नहीं सकता” यह उनकी मानसिकता को दर्शाता है। सत्य यह भी है कि हमारे देश में अनेक नेताओं को बड़बोलेपन की आदत है। अब आदत से लाचार हैं तो फिर उत्साह में कुछ भी बयान दे देते हैं। विडंबना, जो गंगा निकट गए नहीं, गंगा में स्नान नहीं किया, भारत की जल संस्कृति को नहीं समझा, गंगा के बारे में लिखें ऋषि महात्माओं विद्वानों के साहित्य का अवगाहन नहीं किया, वे नदियों के बारे में अनर्गल बातें करते हैं। इसलिए उनके बयानों का कोई औचित्य नहीं।
मेरा पत्रकारों से भी निवेदन है कि पीत पत्रकारिता से बचें। ऐसे नेताओं के भाषणों को कोई तवज्जो न दें, जो देश की संस्कृति, परंपराओं, श्रध्दा केंद्रों का तिरस्कार करते हों। संपादक मंडल इस तरह के फिजूल के समाचार अपने समाचार पत्र में छाप कर अपने समाचार पत्रों की प्रतिष्ठा को हल्का न करें। अपने पाठक वर्ग को निराश न करें। नेताओं का तो कुछ बिगड़ता नहीं। वे कभी भी बयान बदल लेंगे। या आरोप लगा देंगे कि मेरे बयान को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया। परंतु पाठकों ने जिस समाचार पत्र को यदि एक बार ठुकरा दिया उसको पुनः प्रतिष्ठा पाने में बहुत लंबा समय लग जाता है। जिस प्रकार से प्रभाष जोशी के एक ही संपादकीय से जनसत्ता धाराशाई हो गया था। सावधान रहें, सुधि पाठक सर्वत्र दृष्टि रखता है।
राष्ट्रों की विभिन्नता उनकी अपनी सांस्कृतिक विशिष्टता के कारण है। प्रत्येक देश की अपनी अलग संस्कृति तथा परंपराएं होती है। वही उसकी पहचान होती है। नदियां देवी स्वरूपा हैं। भारतीय मनीषा ने उनको मां के रूप में महत्व दिया है। मां सर्वदा देती है। नदियां करोड़ों लोगों तथा असंख्य जीव जंतुओं की प्यास बुझाती हैं। उनके जल से खेतों में सिंचाई होती है। सभी के लिए अनाज, फल, सब्जियां आदि की उपज होती है, वन्यजीवों को संरक्षण मिलता है।
क्या नदियों ने स्वयं अपने आपको प्रदूषित किया है ? मानवीय क्रियाकलापों से नदियां प्रदूषित हुई हैं। मनुष्य की अनदेखी, उपेक्षा की नदिया शिकार हैं। मनुष्य की भोगवादी प्रवृत्ति से नदियां सिसक रही हैं। नदियों ने स्वयं पर अतिक्रमण नहीं किया सरकारी और गैर सरकारी दोनों स्तर पर नदियों के डूब क्षेत्र पर अतिक्रमण हो रहा है और आरोप नदियों पर लग रहा है?
आवश्यकता मानवीय विवेक के जागरण की है। नदियों में स्नान करें या न करें यह आपकी इच्छा, विवेक पर निर्भर है। नदियों में मात्र सामान्य रूप से स्नान करें। शैंपू, साबुन का प्रयोग न करें नदियों के किनारे मल मूत्र विसर्जन न करें। अपने पुराने कपड़ों को नदियों के घाट पर न छोड़े। स्नान के पश्चात घाट से पर्याप्त दूरी पर ही कपड़े आदि धोने चाहिए। नदियों को आपसे फुल, माला, धूप, अगरबत्ती आदि की अपेक्षा नहीं है। नदियों की पूजा उनके किनारे बैठकर ईश्वर का ध्यान करें बहते हुए जल को देखें। उनमें कोई भी सामग्री प्रवाहित करने की आवश्यकता नहीं। नदियों में नौका विहार करते हुए कोई खाद्य पदार्थ खाएं उनके खाली रैपर, पॉलिथीन, खाली पानी/ कोल्ड ड्रिंक की बोतलें नदियों में नहीं फैंकनी चाहिए। नदियां स्थल मंडल की नस नाड़ियां हैं। प्रकृति के स्वास्थ्य की दृष्टि से उनके प्रवाह हो हमें अपनी अविवेकी आदतों से अवरुद्ध नहीं करना चाहिए।
_ संजय स्वामी
राष्ट्रीय संयोजक (पर्यावरण शिक्षा)
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, नई दिल्ली